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  • अटल बिहारी वाजपेयी पर एक महिला के साथ अवैध संबंध का आरोप लगा, फिर भी इश्क करना नहीं छोड़ेअटल बिहारी वाजपेयी पर एक महिला के साथ अवैध संबंध का आरोप लगा, फिर भी इश्क करना नहीं छोड़े

    अटल बिहारी वाजपेयी पर एक महिला के साथ अवैध संबंध का आरोप लगा, फिर भी इश्क करना नहीं छोड़े

    आज मैं आपको बताने जा रहा हूं एक ऐसे राजनेता की कहानी जिसे राजकुमारी से ऐसा इश्क होता है कि फिर वो किसी की भी नहीं सुनता. कहानी एक ऐसे राजनेता की जिस पर एक महिला के साथ अवैध संबंध का आरोप लगता है. आज बात भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेम कहानी की. 

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  • भारतीय संविधान का प्रारूप कैसे तैयार किया गया था और किसने तैयार किया था?भारतीय संविधान का प्रारूप कैसे तैयार किया गया था और किसने तैयार किया था?

    भारतीय संविधान का प्रारूप कैसे तैयार किया गया था और किसने तैयार किया था?

    आज यानी 26 नवंबर का दिन भारत में 'संविधान दिवस' के रूप में मनाया जाता है. इसकी वजह है कि इसी दिन यानी 26 नवंबर, 1949 को भारतीय संविधान को अपनाया गया था. और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया था. आइए जानते हैं भारतीय संविधान का प्रारूप कैसे तैयार किया गया था और किसने तैयार किया था.

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  • मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली में क़ैद शायरों की मोहब्बतमिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली में क़ैद शायरों की मोहब्बत

    मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली में क़ैद शायरों की मोहब्बत

    “मुझे यहां अजीब- सी सुख़न और अजीब -सा लहजा मिलता है. कहीं न कहीं सुकून प्राप्त करने आता हूं. महीनें में एक या दो बार ज़रूर आता हूं. यहां अपने आप को खोज पाता हूं ग़ालिब की नज़्मों में और ग़ालिब की गलियों में. मुझे एक नज़्म याद आ रही है -                                   “कोई वीरानी सी वीरानी है                                    दश्त को देख के घर याद आया.”ये बातें और नज़्म कहते मिले मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली में आए श्याम सिंह. श्याम सिंह पटना में कोचिंग चलाते हैं. इनके जैसे शायरी के शौक़ीन हज़ारों लोग ग़ालिब की हवेली में रोज़ शिरकत करते है. मिर्ज़ा ग़ालिब का पूरा नाम मिर्ज़ा असद- उल्लाह बेग खां है.प्यार से लोग ग़ालिब कहने लगे. आगरा में जन्में ग़ालिब , घर से दूर दिल्ली की इसी हवेली में रहते थे.ग़ालिब की हवेली दिल्ली के चावड़ी बाज़ार मेट्रो स्टेशन से लगभग पांच किलोमीटर दूरी पर बल्लीमारान की गली कासिमजान में स्थित है. ग़ालिब की हवेली फाइव स्टार होटल की तरह तो नहीं है, लेकिन शायरों के लिए जन्नत ज़रूर है. हवेली के बाहर की गली शोर और चौंकाचौक से भरी पड़ी है. वहीं हवेली में इसके विपरीत शायरी की ख़ुशबू आती है.ग़ालिब की हवेली की संरचना की ख़ूबसूरती , संरचना से नहीं बल्कि शायरी से है. उनकी शायरी कमरें के हर दीवार पर लिखी हुई है. उत्तरप्रदेश से ग़ालिब की हवेली देखने आए कमलेश तिवारी कहते हैं “ ग़ज़ल और शायरी को असली पहचान तो मिर्ज़ा ग़ालिब ने ही दी . ग़ालिब ने अपनी नज़्मों में अमन , पेगाम और मोहब्बत को दर्शाया है. उनकी एक शायरी मुझे याद आ रही है-

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  • अक्टूबर में थोक महंगाई दर बीते 8 महीनों के उच्चतम स्तर पर क्यों पहुंचा?अक्टूबर में थोक महंगाई दर बीते 8 महीनों के उच्चतम स्तर पर क्यों पहुंचा?

    अक्टूबर में थोक महंगाई दर बीते 8 महीनों के उच्चतम स्तर पर क्यों पहुंचा?

    देश में अक्टूबर महीने में WPI यानी होलसेल प्राइज इंडेक्स पर आधारित महंगाई दर बढ़कर 1.48 फीसदी हो गई है. यह दर सिंतबर 2020 में 1.32 फीसदी थी. यानी 0.16 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. वहीं पिछले साल अक्टूबर में WPI शून्य फीसदी था. पिछले एक साल के दौरान इसमें लगातार तीसरी बार बढ़ोत्तरी हुई है. इसके साथ ही थोक महंगाई दर बीते 8 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है.

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  • पत्नी बेवफ़ा है या नहीं ये जानने के लिए कौन-सा टेस्ट कराने को कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने?पत्नी बेवफ़ा है या नहीं ये जानने के लिए कौन-सा टेस्ट कराने को कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने?

    पत्नी बेवफ़ा है या नहीं ये जानने के लिए कौन-सा टेस्ट कराने को कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने?

    अक्सर देखा जाता है कि पारिवारिक विवाद के चलते पति-पत्नि का तलाक हो जाता है. इसके बाद पति की तरफ से पत्नि को गुजाराभत्ता देना पड़ता है. इसको लेकर भी दोनों में विवाद छिड़ा रहता है. ऐसे ही एक मामले में इलाहाबाद होई कोर्ट  ने पत्नी की बेवफाई को लेकर एक अहम बात कही है.

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  • अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे की जरूरत हैंअधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे की जरूरत हैं

    अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे की जरूरत हैं

    अधिकार लोगों की जरूरत है. कर्तव्य निष्ठा है. या यूं कहें कि अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं. इन्हें एक ही सिक्के के दो पहलू कहा जाता है. हमें कोई भी अधिकार तभी प्राप्त होता है जब अन्य नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करें. अन्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए.

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  • धार्मिक स्वतंत्रता आपका मौलिक अधिकार है!धार्मिक स्वतंत्रता आपका मौलिक अधिकार है!

    धार्मिक स्वतंत्रता आपका मौलिक अधिकार है!

    धार्मिक स्वतंत्रता. दो शब्द हैं. दोनों शब्दों का मतलब भी अलग-अलग है, लेकिन दोनों शब्दों के जुड़ाव से लोगों का मूलभूत अधिकार बनता है. सरल शब्दों में धार्मिक का मतलब धर्म से है. हिंदू , मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन और बौद्ध जैसे अनेकों धर्म हैं, पूरे देश भर में.

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  • पत्रकारिता का स्वरूप बदल चुका है?पत्रकारिता का स्वरूप बदल चुका है?

    पत्रकारिता का स्वरूप बदल चुका है?

    नई सदी की शुरुआत है. पत्रकारिता के स्वरूप में भी बदलाव आया है. पत्रकारिता का प्रथम स्वरूप अखबार यानी प्रिंट मीडिया है. फिर टेलीविजन यानी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दौर आया. आज डिजिटल दौर में यह बिल्कुल नए तेवर और कलेवर के साथ अपनी धमक बनाए हुए है. अख़बार और पत्रिकाओं से शुरू हुई पत्रकारिता अब ऑनलाइन, जिसे वेब-पत्रकारिता कहते है, तक पहुंच चुकी है.

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  • जब चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से कहा: “मैं कांग्रेस को समाजवादी बना दूंगा”जब चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से कहा: “मैं कांग्रेस को समाजवादी बना दूंगा”

    जब चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से कहा: “मैं कांग्रेस को समाजवादी बना दूंगा”

    आज के आधुनिक युग में सबसे चर्चित विषय ‘विकास’ है. जब भी विकास की बातें हुईं, विचारधारा ने अपनी खेप जमा ली. समाजवाद, उदारवाद और साम्यवाद, ये तीनों सबसे चर्चित विचारधाराएं हैं.

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  • निर्वाचन आयोग कितना निष्पक्ष है?निर्वाचन आयोग कितना निष्पक्ष है?

    निर्वाचन आयोग कितना निष्पक्ष है?

    भारत में अब तक 17 आम चुनाव हो चुके हैं.  निर्वाचन आयोग के चुनौतीपूर्ण कार्य को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि निर्वाचन क्षेत्रों में परिसीमन से लेकर निर्वाचन अधिनिर्णय तक के कार्य को आयोग ने कार्यकुशलता, निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ संपन्न किया है.आयोग ने एक समय उत्तराखंड के गढ़वाल में दोबारा मतदान के आदेश दिए और 1989 के लोकसभा चुनाव के दौरान 1235 केंद्रों पर पुनर्मतदान संपन्न कराया.नौंवी लोकसभा चुनाव के समय निर्वाचन की निष्पक्षता पर कई सवाल खड़े हुए; जैसे- प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चुनाव क्षेत्र अमेठी में धाँधली, हिंसा और मतदान केंद्रों पर कब्जे शिकायतों को सही पाने पर भी मात्र 97 मतदान केंद्रों पर ही दोबारा मतदान कराने का निर्णय लिया गया.अन्य क्षेत्रों से आई शिकायतों पर बिना पुख़्ता जाँच कराए ही आयोग ने दोबारा मतदान कराने के आदेश दिए जबकि अमेठी के जाँच के लिए विशेष दल भेजा गया. सवाल उठता है कि अमेठी के मामले में चुनाव आयोग अलग मानदंड क्यों अपनाया?अमेठी को विशेष क्षेत्र मानना किसी भी आधार पर न्यायोचित नहीं माना जा सकता. चुनाव आयोग के अध्यक्ष पैरी शास्त्री के सामने गढ़वाल का उदाहरण मौजूद था, अगर वे अमेठी में दोबारा चुनाव का आदेश दे देते तो पहाड़ टूटने वाला नहीं था बल्कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता में भरोसा ही पैदा होता.इसी तरह प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा बेला पर ₹50 अरब की इंदिरा महिला योजना की घोषणा राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए बनी आचार संहिता का सरासर उल्लंघन था, लेकिन चुनाव आयोग ने इसे मात्र ‘सीमा रेखा उल्लंघन’ माना.10वीं लोकसभा के निर्वाचन के समय आयोग ने एक समय बिहार सरकार को भयभीत कर दिया. बिहार से ऐसी रिपोर्ट मिली थी कि चुनाव में व्यापक हिंसा और मतदान बूथों पर कब्जा होगा. बिहार सरकार ने एक लाख होमगार्डों को इस आश्वासन के साथ चुनाव बूथों पर नियुक्त किया कि चुनाव के बाद उनकी नौकरी पक्की कर दी जाएगी.आयोग ने बिहार सरकार को निर्देश दिया कि होम गार्डों को चुनावी ड्यूटी पर नियुक्त न किया जाए. इसी तरह निर्वाचन आयोग ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि 25 मार्च, 1991 के बाद चुनावी प्रक्रिया से सम्बंधित किसी भी अधिकारी का स्थानांतरण न किया जाए. जिन राज्यों ने ऐसा किया उन्हें आयोग ने स्थानांतरण रद्द करने के निर्देश दिए.

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  • क्या आत्महत्या करना अपराध है?क्या आत्महत्या करना अपराध है?

    क्या आत्महत्या करना अपराध है?

    14 जून को बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) की मौत मुंबई स्थित बांद्रा के अपार्टमेंट में हो गई थी. शुरुआत में इस मामले की जांच मुंबई पुलिस कर रही थी. मुंबई पुलिस (Mumbai Police) ने इसे आत्महत्या (Suicide) करार दे दिया था.लेकिन सुशांत की मौत के मामले में संदेह के चलते जांच सीबीआई (CBI) को सौंपा गया. सीबीआई के साथ इस मामले में धोखाधड़ी से जुड़े मामले की जांच ईडी (ED) कर रही है.जांच के दौरान इस मामले में ड्रग्स कनेक्शन का मामला भी सामने आया है. इसकी जांच एनसीबी (NCB) कर रही है. रिया चक्रवर्ती (Rhea Chakraborty) को जेल में डाल दिया गया है.आपको बता दें, सुशांत की मौत के बाद सुशांत के पिता के.के. सिंह (K.k.Singh) ने रिया के खिलाफ पटना में एफआईआर दर्ज कराया था. इस एफआईआर (FIR) में लिखा था कि रिया ने सुशांत को आत्महत्या के लिए उकसाया. रिया ने सुशांत की हत्या की है.इसके साथ ही यह भी इल्ज़ाम लगाया था कि रिया ने सुशांत को उनके परिवार से दूर रखा था.बात दें, आत्महत्या करना या आत्महत्या करने की कोशिश करना और आत्महत्या के लिए उकसाना क़ानून के तहत अपराध है. लेकिन इसी बीच कई लोगों का कहना है कि तनाव से मुक्ति पाने के लिए आत्महत्या करना अभिव्यक्ति की आज़ादी है.यह अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 (Article-19) के तहत मिला है. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. याचिका के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट को इस विवाद को सुलझाना है.भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code), 1986 की धारा-306  के तहत अगर किसी व्यक्ति के उकसाने पर कोई व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है, तो जिस व्यक्ति ने उकसाया है, वह अपराधी है.अपराधी को 1 से 10 साल तक के लिए जेल की सज़ा हो सकती है. इसके साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ेगा.भारतीय दंड संहिता की धारा-309 के मुताबिक आत्महत्या करने का प्रयास करना अपराध है. इसके लिए सजा का प्रावधान है.अपराधी को एक साल तक के लिए जेल हो सकती है. साथ ही साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है.हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 की धारा-115 ने औपनिवेशिक दंड संहिता को खत्म करने की मांग की है. इसमें कहा गया है कि आईपीसी की धारा-309 के बावजूद, अगर कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करने का प्रयास करता है, उसे तब तक मान लिया जाएगा, जब तक उस व्यक्ति को गंभीर तनाव न हो.ऐसे व्यक्ति पर आईपीसी की धारा-309 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और उसे किसी भी तरह की सजा नहीं दी जाएगी.आत्महत्या करने का प्रयास आईपीसी (IPC) की धारा-309 के तहत दंडनीय अपराध है। हालांकि, हम पाते हैं कि मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 की धारा-115 आईपीसी की धारा-309 पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है.

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  • देश की राजनीति में जाति की भूमिका : वरदान या अभिशापदेश की राजनीति में जाति की भूमिका : वरदान या अभिशाप

    देश की राजनीति में जाति की भूमिका : वरदान या अभिशाप

    भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका का मूल्यांकन करना अत्यंत कठिन कार्य है. कई लोग जाति को राजनीति का कैंसर मानते हैं. जाति प्रथा को राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधक माना जाता है. इससे व्यक्तियों में पृथकतावाद की भावना आती है. राष्ट्रीय हितों और सामाजिक मुद्दों की जगह जातिगत हितों को अधिक महत्त्व देने लगते हैं. देश भर में जातिगत राजनीति ने अपना दबदबा बनाए रखा है.बिहार चुनाव नज़दीक है. सभी राजनीति दल अपनी-अपनी जाति को परखना शुरू कर चुके हैं. जातिगत राजनीति पर जयप्रकाश नारायण ने कहा है,“जाति भारत में अत्यधिक महत्वपूर्ण दल है.”भारतीय स्वतंत्रता के बाद से ही देश में राजनीतिक आधुनिकीकरण प्रारंभ हो गया. यह धारणा विकसित हुई कि पश्चिमी राजनीतिक संस्थाएं और लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाने के बाद राजनीति में जातिवाद का अंत हो जाएगा. इसके उटल जातिगत का प्रभाव बढ़ता ही गया.हमारे राजनीतिज्ञ एक अजीब असमंजस की स्थिति में हैं. जहां एक ओर वे जातिगत भेदभाव मिटाने की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर जाति के आधार पर वोट बटोरने की कला में निपुणता हासिल है. देश के किसी भी राज्य की राजनीति जातिगत राजनीति से अछूती नहीं है.जातिगत नेताओं की शुरुआत 1989 में मंडल कमीशन के वक़्त होने लगी. 1991 के बाद जो बड़े नेता जैसे लालूप्रसाद यादव, नीतीश कुमार, मायावती, मुलायम सिंह, शिवराज सिंह चौहान, शरद यादव आए, वे जाति आधारित राजनीति के प्रतिनिधि बन गए. ऐसा भी कहा जाता है कि जितने भी निम्न जाति के नेताओं का जन्म हुआ, यह मंडल कमीशन की ही देन है.प्रो. रजनी कोठारी की लिखी ‘ कास्ट इन इंडियन पॉलिटिक्स’ में भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका का विस्तृत विश्लेषण है. इस किताब के मुताबिक़ राजनीति में जाति का आना उचित है. इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ी है. इससे पहले ऊंची जाति यानी ब्रह्मणों का दबदबा रहता था.रजनी कोठारी का मत है कि अक्सर यह प्रश्न पूछा जाता है कि क्या भारत में जाति प्रथा ख़त्म हो रही है? इस सवाल के पीछे यह धारण है कि मानो जाति और राजनीति परस्पर विरोधी संस्था हैं. ज़्यादा सही सवाल यह होगा कि जाति-प्रथा पर राजनीति का क्या प्रभाव पड़ रहा है और जाति वाले समाज में राजनीति क्या रूप ले रही है?जो लोग राजनीति में जातिवाद की शिकायत करते हैं, वे न राजनीति के प्रकृत स्वरूप को ठीक से समझ पाए हैं और न जाति के स्वरूप को. भारत की जनता जातियों के आधार पर संगठित है. इसलिए न चाहते हुए भी राजनीति को जाति संस्था का उपयोग करना ही पड़ेगा. यह कहा जा सकता है कि राजनीति में जातिवाद का मतलब जाति का राजनीतिकरण है.जाति को अपने दायरे में खींचकर राजनीति उसे अपने काम में लाने का प्रयत्न करती है. दूसरी ओर राजनीति द्वारा जाति या बिरादरी को देश की व्यवस्था में भाग लेने का मौक़ा मिलता है. राजनीतिक नेता सत्ता प्राप्त करने के लिए जातीय संगठन का उपयोग करते हैं और जातियों के रूप में उनको बना-बनाया संगठन मिल जाता है, जिससे राजनीतिक संगठन में आसानी होती है.रजनी कोठारी के उलट सोच रखने वाले हेरल्ड गोल्ड का कहना है कि राजनीति का आधार होने की बजाय जाति उसको प्रभावित करने वाला एक तत्व है.माइकल ब्रेचर के मुताबिक़ अखिल भारतीय राजनीति की अपेक्षा राज्य स्तर की राजनीति पर जातिवाद का अधिक प्रभाव है. बिहार, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र राज्यों की राजनीति का अध्ययन तो बिना जातिगत गणित के विश्लेषण के कर ही नहीं सकते.बिहार की राजनीति में राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ और जनजाति प्रमुख जातियां हैं. केरल में साम्यवादियों की सफलता का राज यही है कि उन्होंने ‘इजावाहा’ जाति को अपने पीछे संगठित कर लिया. आन्ध्र प्रदेश की राजनीति में काम्मा और रेड्डी जातियों का संघर्ष की कहानी है. काम्मओं ने साम्यवादियों का समर्थन किया तो रेड्डी जाति ने कांग्रेस का.महाराष्ट्र की राजनीति में मराठों, ब्रह्मणों और महरों में प्रतिस्पर्धा रही है. गुजरात की बात करें तो दो जातियां-पाटीदार और क्षत्रिय का प्रभाव है.डी.आर गाडगिल कहते हैं “क्षेत्रीय दबावों से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक बात यह है कि वर्तमान समय में जाति व्यक्तियों को एकता के सूत्र में बाधने में बाधक सिद्ध हुई है.”प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम.एन.श्रीनिवास का स्पष्ट कहना है कि परंपरावादी जाति व्यवस्था ने प्रगतिशील और आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था को इस तरह प्रभावित किया है कि ये राजनीतिक संस्थाएं अपने मूलरूप में कार्य करने में समर्थ नहीं रही हैं.दूसरी तरफ़ अमेरिकी लेखक रूडोल्फ़ का कहना है कि जाति व्यवस्था ने जातियों के राजनीतिकरण में सहयोग देकर परंपरावादी व्यवस्था को आधुनिकता में ढालने के सांचे का कार्य किया है. वे लिखते हैं,“अपने परिवर्तिति रूप में जाति व्यवस्था ने भारत में कृषक समाज में प्रतिनिधिक लोकतंत्र की सफलता तथा भारतीयों की आपसी दूरी को कम करके, उन्हें अधिक समान बनाकर समानता के विकास में सहायता दी है.”चाहे जाति आधुनिकीकरण के मार्ग में बाधक न हो, लेकिन राजनीति में जाति का हस्तक्षेप लोकतंत्र की धारणा के प्रतिकूल है. जातिवाद देश, समाज और राजनीति के लिए बाधक है. विविधता की सीमाएं होती हैं.इस देश में इतनी जातियां, उपजातियां और सहजातियां पैदा हो गई हैं कि वे एक-दूसरे से अलग रहने में ही अपने-अपने अस्तित्व की रक्षा समझती हैं. यह अलग रहने की सोच ही राष्ट्रीय एकता के लिए घातक है.

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