पत्नी बेवफ़ा है या नहीं ये जानने के लिए कौन-सा टेस्ट कराने को कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने?

अक्सर देखा जाता है कि पारिवारिक विवाद के चलते पति-पत्नि का तलाक हो जाता है. इसके बाद पति की तरफ से पत्नि को गुजाराभत्ता देना पड़ता है. इसको लेकर भी दोनों में विवाद छिड़ा रहता है. ऐसे ही एक मामले में इलाहाबाद होई कोर्ट  ने पत्नी की बेवफाई को लेकर एक अहम बात कही है.

जस्टिस विवेक अग्रवाल ने अपने फैसले में कहा कि बच्चे के पिता कौन हैं यह जानने के लिए DNA कराना ही सही उपाय है. यह एक वैज्ञानिक तरीका है. इससे पति और पत्नि में कौन सही है इसका पता चल जाएगा.

क्या है पूरा मामला?

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर का मामला है. पति राम आसरे के मुताबिक जनवरी 2013 से वे अपनी पत्नि से अलग रह रहे थे. इसके अगले साल यानी जून 2014 में दोनों का तलाक हो गया. तलाक के बाद पत्नि अपने मायके में रहने लगी. जनवरी 2016 में पत्नि ने एक बच्चे को जन्म दिया. पत्नि का कहना है कि बच्चे का बाप राम आसरे हैं.

इसके खिलाफ राम आसरे ने फैमिली कोर्ट में याचिका डाली. याचिका में कोर्ट से गुजारिश किया कि बच्चे का DNA टेस्ट किया जाना चाहिए. यह बच्चा मेरा नहीं है. फैमिली कोर्ट ने याचिका ठुकरा दी. बाद में राम आसरे ने इसके खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका डाली. इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बच्चे का DNA टेस्ट कराने की बात को स्वीकार किया.

कोर्ट ने और क्या कहा?

सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने एक मुद्दा आया कि क्या कोर्ट, हिंदू विवाह अधिनियम-1955 की धारा-13 के तहत पति की ओर से दायर याचिका के आधार पर पत्नी को यह निर्देश दे सकती है कि वह बच्चे का DNA टेस्ट कराए. क्या इससे पत्नि मना कर सकती है? क्या DNA का टेस्ट का परिणाम आरोप की सत्यता का निर्धारण करता है? इन सब बातों पर कोर्ट में लंबी-चौड़ी बहस हुई. उसके बाद ही कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया.


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